हमारा विश्वास वचन
1. पवित्रशास्त्र – पवित्र बाइबिल
हम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर ने स्वयं को बाइबल के द्वारा प्रकट किया है जिसमें पुराने और नये नियम की 66 पुस्तकें हैं। बाइबल पूर्णतः अनूठे और अलौकिक रीति से परमेश्वर का वचन है (2 तीमुथियुस 3:16)। यह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से मनुष्यों के द्वारा लिखी गई (2 पतरस 1:20-21)।
क्योंकि हम सीमित और पापी मनुष्य हैं हम परमेश्वर के सत्य को पूर्ण रीति से नहीं जान सकते हैं, परन्तु पवित्र आत्मा के प्रकाशन के कार्य की सहायता से हम बाइबल में प्रकट परमेश्वर के सत्य को सच्चाई से जान सकते हैं (भजन संहिता 119:18; 1 कुरिन्थियों 2:12)। बाइबल, मसीह के शिष्यों के विश्वास और जीवन के लिए एकमात्र अचूक, त्रुटिहीन, पर्याप्त, आधिकारिक और अन्तिम नियम है (भजन संहिता 19:7; यशायाह 55:10-11; मत्ती 24:35)।
इसलिए, बाइबल के पूर्ण और अन्तिम प्रकाशन से अधिक किसी अन्य प्रकाशन की आवश्यकता नहीं है (प्रकाशितवाक्य 22:18-19; नीतिवचन 30:5-6)। परमेश्वर मनुष्यों के सारे व्यवहार, विश्वास, और मतों का इस सर्वोच्च स्तर के द्वारा न्याय करेगा (इब्रानियों 4:12-13)।
हमारा दृढ़ विश्वास है कि ऐसा कोई अन्य लेख नहीं है जो पवित्र बाइबल के बराबर खड़ा हो सके।
2. एक सच्चा परमेश्वर
हम विश्वास करते हैं कि मात्र एक ही सच्चा जीवित परमेश्वर है (व्यवस्थाविवरण 6:4)। वह एक असीमित, अनिर्मित, अनन्त, सुबोध आत्मा है (यशायाह 40:28)। वह सब वस्तुओं का सृजनहार है और आकाश और पृथ्वी का सार्वभौमिक शासक है (प्रकाशितवाक्य 4:11)।
उसकी पवित्रता इतनी महिमामय है कि वह हमारे वर्णन से परे है और वह हमारी आराधना, आदर, और सेवा के योग्य है (यशायाह 6:3)। परमेश्वर अपनी पवित्रता, न्याय, बुद्धि, दया, और प्रेम में अपरिवर्तनीय है (गिनती 23:19; याकूब 1:17)।
और परमेश्वर, अपनी सम्पूर्ण सिद्धता में सब कुछ अपनी महिमा के लिए करता है (यशायाह 48:9, 11)। जब तक परमेश्वर अपने अनुग्रह में होकर स्वयं को प्रकट न करे, तब तक पापी मानव जाति उसे नहीं जान सकती है (रोमियों 3:11)।
यह एकमात्र सच्चा परमेश्वर अनन्तकाल से तीन व्यक्तियों में सह-अस्तित्व में है: पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा (मत्ती 28:19; यूहन्ना 14:26; 2 कुरिन्थियों 13:14)। परमेश्वर की महिमा के लिए हमारे उद्धार को पूर्ण करने में त्रिएकता के तीन व्यक्तियों की भिन्न भूमिकाएं हैं, परन्तु उनमें उद्देश्य की सिद्ध एकता पाई जाती है (1 पतरस 1:2)।
हम हर शिक्षा को नकारते हैं जो त्रिएक परमेश्वर या त्रिएकता के तीन व्यक्तियों के अस्तित्व को अस्वीकार करती है।
3. परमेश्वर पुत्र
हम विश्वास करते हैं कि यीशु ही मसीह अर्थात परमेश्वर का पुत्र है (मरकुस 1:1)। वह सच्चे परमेश्वर का एकमात्र देह धारण (एक मात्र अवतार) है, जो सिद्ध रीति से परमेश्वर को मनुष्यों पर प्रकट करता है (यूहन्ना 1:14; कुलुस्सियों 1:15-16)।
यीशु मसीह में, परलौकिक परमेश्वर हमारे मध्य आ गया (यूहन्ना 1:18)। प्रभु यीशु मसीह वास्तव में परमेश्वर और वास्तव में मनुष्य है (1 यूहन्ना 5:20; इब्रानियों 2:17)। हम विश्वास करते हैं कि उसने पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भधारण किया, कुंवारी से जन्म लिया (मत्ती 1:20, 23), पाप रहित जीवन जीया, और पापियों के पापों के लिए परमेश्वर के दण्ड को सहते हुए (प्राचश्चित) (1 यूहन्ना 2:1), अपने लहू के द्वारा उनका छुटकारा करते हुए (इफिसियों 1:7), पापियों के बदले क्रूस पर मारा गया (दण्डात्मक प्रतिस्थापन प्रायश्चित)।
वह मरे हुओं में से जी उठा (प्रेरितों के काम 2:23-24), स्वर्ग पर चढ़ गया (प्रेरितों के काम 1:10), पिता के दाहिने हाथ पर विराजमान है (इब्रानियों 1:3) और क्योंकि वह परमेश्वर और मनुष्य के बीच में एकमात्र मध्यस्थ है (1 तीमुथियुस 2:5), वह पिता के समक्ष अपने लोगों के लिए मध्यस्थता करता है (रोमियों 8:34)।
हम हर उस सिद्धांत की निंदा और खंडन करते हैं जो प्रभु यीशु मसीह के ईश्वरत्व या मानवता या दोनों, उनके कुंवारी जन्म, उनकी पूर्ण पापहीनता, उनकी प्रतिस्थापन मृत्यु, उनके शारीरिक पुनरुत्थान और आरोहण, उनकी संप्रभुता और उनके दूसरे आगमन को मान्यता नहीं देता है।
4. परमेश्वर पवित्र आत्मा
हम विश्वास करते हैं कि पवित्र आत्मा पिता (यूहन्ना 14:26) और पुत्र (यूहन्ना 15:26) के द्वारा स्वर्ग से मसीह की महिमा करने और उद्धार के कार्य को लोगों के जीवन पर लागू करने के लिए भेजा गया है।
वह पाप के विषय में संसार को कायल करता है (यूहन्ना 16:8), नया जन्म (नया जीवन) देता है (यूहन्ना 3:5), और पवित्र शास्त्र की सच्ची समझ देता है। सारे सच्चे विश्वासी पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पा चुके हैं (1 कुरिन्थियों 12:13), और वह उनमें वास करते हुए (1 कुरिन्थियों 6:19), उद्धार की निश्चयता को लाता है और उनको वचन के अनुसार भक्तिपूर्ण जीवन व्यतीत करने में सक्षम बनाता है (रोमियों 8:13-14)।
वह विश्वासियों को मसीह कि देह में लाता है, कलीसिया का निर्माण करता है, और उसके सदस्यों को आराधना, सेवा और सुसमाचार प्रचार की सेवा के लिए सक्षम बनाता है (इफिसियों 5:18-20)। वह कलीसिया के निर्माण के लिए कलीसिया में अपनी इच्छा के अनुसार अलग-अलग लोगों को अलग-अलग वरदान देने के द्वारा यह करता है (1 कुरिन्थियों 12: 4-6)। (इसका अर्थ है कि एक मसीही होने के लिए या अधिक आत्मिक होने के लिए किसी विशेष वरदान की उपस्थिति की मांग नहीं की जानी चाहिए।)
हम उन सभी शिक्षाओं को त्यागते हैं जो पवित्र आत्मा के व्यक्तित्व और ईश्वरत्व को नकारती हैं। हम परमेश्वर के वचन के विपरीत सभी अजीब अभिव्यक्तियों का भी त्याग करते हैं जो पवित्र आत्मा से भरे/बपतिस्मा लेने का दावा करते समय घटित होती हैं, जो अक्सर बहुत अधिक भावनात्मक उत्तेजना के साथ होती हैं।
5. मनुष्य
हम विश्वास करते हैं कि मनुष्य परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया है (उत्पत्ति 1:26-27)। परमेश्वर ने मनुष्य को नर और नारी करके बनाया, जिनकी एक समान प्रतिष्ठा और मूल्य है, परन्तु भिन्न भूमिकाएँ हैं (उत्पत्ति 1:27; 2:18)।
(इसकी पुष्टि लैंगिक भूमिकाओं पर पूरक (कॉम्प्लिमेंटेरियन) विचारधारा में की गई है) मनुष्य के अस्तित्व का उद्देश्य है कि वह परमेश्वर की आराधना करने, उसकी आज्ञा मानने, उससे प्रेम करने, और उस का आनन्द उठाने के द्वारा उसकी महिमा करे (भजन संहिता 37:4; प्रकाशितवाक्य 4:11)।
परन्तु पाप के कारण, हमारे हृदय के सम्पूर्ण विचार भ्रष्ट हो गए हैं, और हमारा स्वभाव दूषित (पूर्णरूप से भ्रष्ट) हो गया है (उत्पत्ति 6:5; रोमियों 5:12)। हम स्वभाव और कार्य दोनों से पापी हैं (1 यूहन्ना 1:8, 10), और प्रत्येक अपश्चातापी (आत्मिक रूप से मृतक) मनुष्य परमेश्वर के सिद्ध, धर्मी, और अनन्त प्रकोप के अधीन है (रोमियों 1:18 इफिसियों 2:3)।
हमें निश्चित रूप से हमारे पापों की क्षमा और एक मात्र पवित्र परमेश्वर से मेल-मिलाप की आवश्यकता है (इब्रानियों 9:27)।
6. उद्धार
उद्धार का अर्थ है आत्मिक रूप से नया जन्म (यूहन्ना 3:3), हमारे पापों के दण्ड का क्षमा किया जाना (1 यूहन्ना 2:2), एकमात्र सच्चे परमेश्वर के साथ मेल होना (रोमियों 5:1), सच्ची अनन्त आत्मिक शान्ति की अनुभूति करना और अनन्त आत्मिक जीवन की निश्चयता (जीवन के बाद का जीवन) (1 पतरस 1:3)।
हम विश्वास करते हैं कि उद्धार अनुग्रह ही के द्वारा केवल प्रभु यीशु मसीह ही में विश्वास ही से होता है (इफिसियों 2:8; तीतुस 3:5)। यह हमारे कार्यों (रीति-विधियां, धार्मिकता, नैतिकता या स्वयं की मेहनत के कार्य) के कारण नहीं है (इफिसियों 2:9)।
उद्धार का कार्य प्रभु यीशु मसीह के जीवन और क्रूस पर उनकी मृत्यु के द्वारा पूरा किया गया है, और यह सेंतमेंत में उन सब के लिए दिया गया है जो सुसमाचार सुनकर उस पर विश्वास करते हैं (यूहन्ना 3:16)। अपने प्रेम के कारण परमेश्वर अपने लोगों को चुनता है (इफिसियों 1:4), पूर्व-निर्धारित करता है, गोद लेता है (इफिसियों 1:5), छुड़ाता है, क्षमा करता है (इफिसियों 1:7), धर्मी ठहराता है, पवित्र करता है और महिमान्वित करता है (रोमियों 8:30)।
हम ऐसी सभी शिक्षाओं को अस्वीकार करते हैं जो मानव जाति की गिरी हुई स्थिति को स्वीकार नहीं करती हैं और मानती हैं कि अच्छे कार्यों से उद्धार प्राप्त किया जा सकता है।
हम सुसमाचार के बारे में ईसाई जगत में मौजूद सभी झूठी शिक्षाओं को भी अस्वीकार करते हैं जो शारीरिक चंगाई, भौतिक समृद्धि, सांसारिक सफलता, धार्मिक गतिविधियों, नरक से बचने और स्वर्ग में प्रवेश पाने, अच्छे कार्यों या किसी भी अस्थायी सांसारिक आशीर्वाद पर जोर देती है।
7. धर्मीकरण और पवित्रीकरण
हम विश्वास करते हैं कि धर्मी ठहराया जाना सुसमाचार की महान आशीष है जो मसीहों को यीशु पर विश्वास करने से प्राप्त होती है। यह एक कानूनी कार्य है जिसमें परमेश्वर अपनी दृष्टि में मनुष्यों को धर्मी घोषित करता है, क्योंकि परमेश्वर के द्वारा उनके सारे पाप सेंतमेंत में क्षमा कर दिए गए हैं, और मसीह की धार्मिकता उनकी हो जाती है (दे दी गई है) (रोमियों 4:25; 5:1)।
यह एक बार सदा के लिए सम्पूर्णता से परमेश्वर का तात्कालिक कार्य है, जिसमें वह पापियों को अपने अनुग्रह के कारण सही और धर्मी मानता है। दूसरे शब्दों में, धर्मी ठहराए जाने में, पापी मनुष्य मसीह के समान घोषित किए जाते हैं। धर्मी ठहराया जाना केवल मसीह यीशु ही में विश्वास ही से, अनुग्रह ही के द्वारा होता है (गलातियों 2:16; रोमियों 3:24, 28)।
दूसरी ओर, पवित्रीकरण, मसीह के समान बनने का एक प्रगतिशील कार्य है। यह एक व्यक्ति में वास्तविक आन्तरिक आत्मिक परिवर्तन है, जिसके द्वारा हम परमेश्वर की पवित्रता के सहभागी बनाए जाते हैं (यूहन्ना 17:17, 19)। यह कार्य जो हमारे नए जनम के समय में आरम्भ हुआ था अब पवित्र आत्मा की उपस्थिति और सामर्थ्य के द्वारा विश्वासियों के हृदय और जीवन में होता जा रहा है (फिलिप्पियों 1:6; गलातियों 5:22-23)।
जैसे-जैसे हम उन साधनों का प्रयोग करते हैं जो उसने हमें दिए हैं, जैसे परमेश्वर का वचन, विश्वासियों की संगति, प्रार्थना, स्वयं का अवलोकन, स्वयं का इनकार, सतर्कता आदि, तो वह हमारे अन्दर कार्य करता है, और हमें मसीह के समान बनाता है (2 कुरिन्थियों 3:18; फिलिप्पियों 2:12-13)।
8. आत्मिक नया जन्म (रूपांतरण/फिर से जन्म)
हम विश्वास करते हैं कि सब मनुष्य चाहे वे जिस भी जाति, रंग या मत के हों अपने पापों में मरे हुए ही जन्म लेते हैं (रोमियों 3:10; इफिसियों 2:1)। वे अपने स्वयं के प्रयासों से अपने आप को बचाने में असमर्थ हैं। आत्मिक नए जन्म में पवित्र आत्मा हृदयों को बदलता है (यहेजकेल 36:26; यूहन्ना 3:5-6), पापों में मरे हुए लोगों को नया जन्म देता है (इफिसियों 2:5), तथा सुसमाचार पर विश्वास करने और अपने पापों से पश्चाताप करने के लिए सक्षम बनाता है (इफिसियों 1:13: 1 पतरस 1:23-25)।
बाइबल के अनुसार आत्मिक नया जन्म (हृदय परिवर्तन) पूर्ण रीति से परमेश्वर के पवित्र आत्मा का अलौकिक, आन्तरिक, आत्मिक, अदृश्य कार्य है और बल पूर्वक, प्रलोभन या आकर्षण के द्वारा नहीं किया जा सकता है (तीतुस 3:5-7)।
वास्तव में नया जन्म लेने वाले विश्वासी में परमेश्वर के वचन के प्रति भूख होती है और वह परमेश्वर को उसके वचन के माध्यम से जानने की इच्छा रखता है (1 पतरस 2:2)। नया जन्म लेने का मतलब पूरी तरह से पाप रहित जीवन जीना नहीं है, बल्कि आत्मा में चलने के माध्यम से सचेत पाप पर सतत विजय का जीवन जीना है (गलातियों 5:16)।
9. बपतिस्मा और प्रभु भोज
हम विश्वास करते हैं कि प्रभु यीशु मसीह के द्वारा सुसमाचार को प्रदर्शित करने के लिए कलीसिया में बपतिस्मा और प्रभु भोज की दो विधियां ठहराई गईं हैं।
मसीही बपतिस्मा में, जिस जन ने परमेश्वर के प्रति अपने पश्चाताप को तथा हमारे प्रभु यीशु मसीह में विश्वास और उसके प्रति आज्ञाकारिता को प्रकट किया है, उसे पानी में डुबो कर, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दिया जाता है (मत्ती 28:19)। यह पापों के प्रति हमारी मृत्यु और मसीह यीशु के साथ नए जन्म के लिए पुनरुत्थान का प्रतीक है (रोमियों 6:3-4)|
बपतिस्मा हमें उद्धार प्रदान नहीं करता है, परन्तु यह एक मसीही में पवित्र आत्मा के आन्तरिक कार्य का बाहरी प्रमाण है। यह एक ऐसा कार्य है, जिसमें एक विश्वासी स्वयं को सार्वजनिक रूप से मसीह के प्रति समर्पित करता है, जिसके द्वारा वह मसीह के साथ एकता, उसकी कलीसिया में स्वयं के प्रवेश, और संसार से अलगाव को प्रकट करता है (प्रेरितों के काम 2:41)।
हम किसी भी विश्वासी को बपतिस्मा लेने के लिए मजबूर नहीं करते हैं क्योंकि यह परमेश्वर के वचन का पालन करना और यीशु को उनके उद्धारकर्ता और प्रभु के रूप में प्रतिबद्ध होना उसकी अपनी पसंद है। हम यह भी मानते हैं कि किसी भी प्रतिबद्ध और बढ़ते विश्वासी के लिए दूसरों को बपतिस्मा देना बाइबिल के अनुसार है और उसे आवश्यक रूप से एक पादरी होने की आवश्यकता नहीं है (यूहन्ना 4:2, प्रेरितों के काम 8:12, 8:36-39, 9:18; 22:16; 1 कुरिन्थियों 1:17).
प्रभु भोज बपतिस्मा पाए हुए विश्वासियों के द्वारा कलीसिया में मसीह के एक ही बार क्रूस पर सदा के बलिदान को स्मरण करते हुए किया जाता है (लूका 22:14-20)। प्रभु भोज में रोटी और दाखरस उसके लोगों के पापों की क्षमा के लिए यीशु की तोड़ी गई देह और बहाए गए लहू के प्रतीक हैं (1 कुरिन्थियों 11:24-25)।
यह तत्व (रोटी और दाखरस) किसी भी प्रकार से अपने अस्तित्व में परिवर्तित नहीं होते हैं। प्रभु भोज कलीसिया के लिए सत्यनिष्ठा के साथ स्वयं का अवलोकन करने के लिए है (1 कुरिन्थियों 11:28)। यह एक आनन्दपूर्ण उत्सव भी है, जिसमें हम एक परिवार के रूप में साथ में मिलकर यीशु मसीह के द्वारा प्रेम में होकर ली गयी मृत्यु को स्मरण करते हैं। जब तक मसीह न लौटे, कलीसिया को एकता में इस विधि में भाग लेते रहना चाहिए (1 कुरिन्थियों 11:26)।
10. कलीसिया
हम सभी युगों के सारे विश्वासियों की आत्मिक एकता पर विश्वास करते हैं चाहे वे किसी भी जाति, देश, और भाषा के हों। वे सब मसीह की देह, विश्वव्यापी कलीसिया के अंग हैं, जिसका एक मात्र सिर मसीह है (मत्ती 16:18; इफिसियों 1:22-23; कुलुस्सियों 1:18)।
यह विश्वव्यापी कलीसिया स्थानीय कलीसियओं में प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देती है। प्रत्येक “स्थानीय कलीसिया” परमेश्वर का कुटुम्ब है (इफिसियों 2:19), जीवित परमेश्वर की मण्डली है और सत्य का स्तम्भ और नींव है (1 तीमुथियुस 3:15)। स्थानीय कलीसिया बपतिस्मा पाए हुए विश्वासियों का समूह है जिन्होंने परमेश्वर की आराधना करने के लिए, एक दूसरे को उत्साहित करने के लिए, वचन का प्रचार सुनने के लिए, अगुवों द्वारा देख-भाल और अनुशासन पाने के लिए, सुसमाचार प्रचार के लिए, और कलीसियाई विधियों में भाग लेने के लिए नियमित रीति से मिलने की वाचा बांधी है (प्रेरितों के काम 2:42; इब्रानियों 10:24-25)।
कलीसिया का उद्देश्य है कि परमेश्वर की महिमा को प्रदर्शित करे (इफिसियों 3:9-10)। वचन के आधार पर स्थानीय कलीसिया में दो कार्यलय या कार्य नियुक्त किए गए हैं – प्राचीन (बिशप/अध्यक्ष/पासबान/पास्टर), जो शिक्षा देने और प्रार्थना करने के द्वारा अगुवाई करते हैं (प्रेरितों के काम 20:28; 1 तीमुथियुस 3:1,8), और धर्म सेवक (सेवक/डीकन), जो कलीसिया में व्यवहारिक रीति से सेवा करते हैं (प्रेरितों के काम 6:2-3; 20:28; 1 तीमुथियुस 3:1, 8)। मसीह की देह में एकता, कलीसिया के भीतर और कलीसियाओं के मध्य पारस्परिक प्रेम, चिन्ता और प्रोत्साहन में व्यक्त होती है। कलीसियाओं के मध्य में सच्ची संगति वहीं पाई जाती है, जहाँ पर कलीसियाएं सुसमाचार के प्रति विश्वासयोग्य होती हैं (गलातियों 2:9)।
स्थानीय कलीसिया को बाहरी अधिकारियों के नियंत्रण के बिना स्वशासन की स्वतंत्रता है (तीतुस 1:5) और वह परमेश्वर के राज्य के विस्तार के लिए अन्य कलीसियओं के साथ काम कर सकती है (रोमियों 16:16, 1 कुरिन्थियों 16:20)। हमारा मानना है कि छोटे सामुदायिक कलीसिया प्रभावी ढंग से कार्य करते हैं क्योंकि प्रत्येक सदस्य द्वारा आध्यात्मिक वरदानों का उपयोग करने के लिए देखरेख करना, शिष्य बनाना और घनिष्ठ संगति रखना आसान होगा (प्रेरितों के काम 20:28, इब्रानियों 3:13, प्रेरितों के काम 2:42, 1 पतरस 4:10)।
जब छोटा समुदाय बढ़ता है, तो हमारा मानना है कि इसे एक और छोटी संगति बनाने के लिए अलग करना होगा। कलीसिया को आलसी, आत्मसंतुष्ट और छोटा बने रहने के लिए नहीं कहा जाता है। हमारा मानना है कि एक कलीसिया का नेतृत्व दो या अधिक अध्यक्षों द्वारा किया जाना चाहिए जिनके पास बाइबिल की योग्यताएं होनी चाहिए जैसा कि पवित्र शास्त्र में देखा गया है (प्रेरितों 14:23; 20:28; फिलिप्पियों1:1; 1 तीमुथियुस 4:17; 1 तीमुथियुस 3:1- 13; तीतुस 1:5-9; इब्रानियों 13:17; याकूब 5:14; 1 पतरस 5:1-5)।
11. दशमांश और देना
हमारा मानना है कि दशमांश इस्राएलियों को दिए गए व्यवस्था के तहत पुराने नियम की आवश्यकता है जहां आय का 10 प्रतिशत (फसल, पशु आदि) मंदिर को दिया जाता है (लैव्यव्यवस्था 27:30, गिनती 18:26, व्यवस्थाविवरण 14:24, 2 इतिहास 31:5). प्रभु यीशु मसीह के मरने और व्यवस्था को पूरा करने के बाद, नए नियम में दशमांश प्रणाली को प्रस्तुत करने की कहीं भी आज्ञा या सिफारिश नहीं की गई है। इसके अलावा, नए नियम में आय का कोई प्रतिशत निर्धारित नहीं है जिसे एक विश्वासी को प्रभु के कार्य के लिए अलग से रखना होगा।
हालाँकि, नया नियम कहता है कि हमें अपनी क्षमतानुसार देना चाहिए (1 कुरिन्थियों 16:2), और इसका मतलब कभी-कभी 10 प्रतिशत से अधिक या कभी-कभी उससे भी कम हो सकता है। यह भी उल्लेख किया गया है कि प्रत्येक विश्वासी को वह देना चाहिए जो उसने अपने मन में (स्वेच्छा से) तय किया है, कुढ़-कुढ़ के, और दबाव से नहीं, बल्कि परमेश्वर की आराधना और मसीह के शरीर की सेवा के रूप में शुद्ध उद्देश्यों के साथ खुशी से (2 कुरिन्थियों 9:7)। प्रभु यीशु मसीह ने यह भी आदेश दिया कि सभी दान कार्य गुप्त रूप से किए जाने चाहिए (मत्ती 6:3-4)।
हम विश्वासियों को सेवा के काम के लिए दान देने के लिए मजबूर नहीं करते हैं और परमेश्वर के काम के लिए अविश्वासियों से स्वेच्छा से कोई पैसा नहीं लेते हैं (3 यूहन्ना 7)। यह हमारा दृढ़ विश्वास है कि हमारा परमेश्वर जिसने हमें उसकी सेवा करने के लिए बुलाया है, वह अपने कार्य की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम है (2 कुरिन्थियों 9:6-8) जब हम उसके प्रति उदार होते हैं।
हम विश्वासियों को अपने परिवार की जरूरतों का ख्याल रखने, अपने कर्ज चुकाने और परमेश्वर के काम के लिए देने से पहले स्पष्ट विवेक रखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। हम प्रत्येक विश्वासी से आग्रह करते हैं कि वह याकूब 1:5 के अनुसार, अपने योगदान की मात्रा और तरीके पर निर्णय लेते समय लगन से प्रार्थना करें और परमेश्वर के ज्ञान की तलाश करें।
12. भविष्य
हम विश्वास करते हैं कि युगों के अन्त में प्रभु यीशु मसीह अपनी महिमा में वापस आएगा (प्रेरितों के काम 1:11; 1कुरिन्थियों 4:5; प्रकाशितवाक्य 22:20)। परमेश्वर पुनः मरे हुओं को जीवित करेगा और हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा धार्मिकता से संसार का न्याय करेगा (1 कुरिन्थियों 15:52; इब्रानियों 9:27)।
दुष्टों को (जो यीशु मसीह का तिरस्कार करते है) नरक में अनन्त मृत्यु के लिए भेजा जाएगा, और धर्मियों को (जो यीशु मसीह पर विश्वास करते हैं) नई पृथ्वी और नए आकाश में अनन्त जीवन मिलेगा (यहून्ना 3:36; 5:28-29; प्रेरितों के काम 24:15; प्रकाशितवाक्य 20:15)। नई सृष्टि में कोई भी पाप, बीमारी, कष्ट और मृत्यु नहीं होगी (यशायाह 65:17; प्रकाशितवाक्य 21:1, 4, 27)।